कैलाश सिंह विकास वाराणसी
वाराणसी। डीएवी पीजी कॉलेज के रिसर्च प्रमोशन सेल एवं कला संकाय के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे 8 दिवसीय कला एवं मानविकी पर रिसर्च मेथोडोलॉजी विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला के चौथे दिन मंगलवार को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के भोपाल परिसर के शिक्षाशास्त्र के आचार्य प्रोफेसर नीलाभ त्रिपाठी ने संस्कृत भाषा के साहित्य में शोधकार्य की स्थिति विषय पर व्याख्यान दिया। प्रोफेसर नीलाभ ने कहा कि संस्कृत साहित्य में वर्णित ज्ञान विज्ञान का मूल्य एवं उसकी वैश्विक उपादेयता को सिद्ध करने के लिए प्रयोगात्मक शोध की महती आवश्यकता है। अभी भी देश में 5,00,000 पांडुलिपिया है जिनका संपादन नहीं हुआ है, उन पर वृहद शोध एवं अध्ययन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वैदिक काल से ही संस्कृत में शोध की परंपरा मौलिक रूप से विद्यमान रही है, वेद, पुराण, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद, शिक्षा ग्रंथ आदि वैदिक ऋषियों के शोध का ही परिणाम है।
अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर सत्यदेव सिंह ने कहा कि वर्तमान में शोध को उपयोगी बनाना है तो उसे समाज से जोड़ना होगा, उसमें नवीन परकता लानी होगी। शोध के विषय ऐसे हो जिससे समाज को कोई लाभ हो और वह नवीन हो अन्यथा समाज के लिए उस शोध का कोई अर्थ नहीं है।
इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। स्वागत प्रोफ़ेसर मधु सिसोदिया, संचालन डॉ. पूनम सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मिश्रीलाल ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डॉक्टर संगीता जैन, डॉक्टर राकेश कुमार राम, डॉ प्रशांत कश्यप, डॉ राहुल, डॉ.दीपक कुमार शर्मा आदि सहित संस्कृत विभाग एवं आरपीसी के समस्त सदस्य मौजूद रहे।
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