बस्ती ब्यूरो
बस्ती/ चंबल को अपनी कर्मभूमि बनाकर उसकी बेहतरी के लिए प्रयासरत चंबल परिवार के प्रमुख शाह आलम राना को उनकी दो दशक लंबी एवं प्रेरणादायक सेवाओं के लिए इंटरनेशनल ओपन यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूमैनिटी हेल्थ साइंस एंड पीस, कैलिफोर्निया ने डी. लिट की मानद उपाधि दी है। शाह आलम क्रांतिकारी परंपरा के दस्तावेजी लेखक है। वे चंबल की 2800 किमी से अधिक दूरी अकेले साइकिल से यात्रा करके चर्चा में आए थे। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के मूल निवासी शाह आलम पूरा पिरई गांव के रहने वाले हैं। शाह आलम के परबाबा पिरई खां महुआ डाबर एक्शन के महानायक थे। उन्होंने अपने गुरिल्ला साथियों के साथ मिलकर 10 जून 1857 को अंग्रेजी सेना के छह अफसरों को मार डाला था। जिसका खामियाजा भी परिवार को भुगतना पड़ा। शाह आलम ने डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या और जामिया मिल्लिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से पढ़ाई की। एक घुमंतू सरोकारी दस्तावेजी लेखक-फिल्मकार के रूप में दो दशक से अधिक समय से सक्रिय हैं। सामाजिक सरोकारों के लिए 2002 में चित्रकूट से अयोध्या तक, 2004 में मेंहदीगंज से सिंहचर तक, 2005 में इंडो-पाक पीस मार्च दिल्ली से मुल्तान तक, 2005 में ही सांप्रदायिक सौहार्द के लिए कन्नौज से अयोध्या, 2007 में कबीर पीस हॉर्मोनी मार्च अयोध्या से मगहर, 2009 में कोसी से गंगा तक पैदल यात्रा की भोपाल के होटल आरके रेजेंसी में रविवार की दोपहर आयोजित विशेष दीक्षांत समारोह में यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट जनरल जीएम डॉ. जसवीर सिंह और यूनिवर्सिटी चांसलर प्रोफेसर अंथनी फर्नाडिज ने उन्हें डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान की। इस मौके पर चंबल में उनके द्वारा किए जा रहे कामों पर चर्चा भी की गई। शाह आलम के साथ फिल्म अभिनेता राजपाल यादव को भी डी. लिट की मानद उपाधि भी दी गयी. इसके बाद सम्मान में भोज का आयोजन किया गया। शाह आलम चंबल घाटी में बदलाव की इबारत लिखने में सक्रिय हैं। वे आजकल पांच नदियों के संगम के नजदीक कुख्यात दस्यु सरगना रहे सलीम गुर्जर उर्फ पहलवान के ग्राम पंचायत स्थित चंबल आश्रम में रह रहे हैं और अपनी ड्रीम परियोजना चंबल विश्वविद्यालय के सपने को साकार करने की दिशा में लगे हुए हैं।
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