रिपोर्ट- उपेंद्र कुमार पांडे आजमगढ़
आजमगढ़। आजमगढ़ के माटी के लाल युवा वैज्ञानिक डॉ. योगेश्वर नाथ मिश्रा और संयुक्त राज्य अमेरिका में विश्व की सबसे नामचीन कैलीफोनिया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के उनके सहकर्मियों ने विश्व की सबसे तेज़ प्लेनर इमेजिंग तकनीक को विकसित किया है। यह तकनीक लेज़र और कण के बीच की प्रक्रिया को 12.5 बिलियन फ्रेम प्रति सेकंड की गति से रिकॉर्ड सकती है है। ये मौजूदा अत्याधुनिक तरीकों से कम से कम 1000 गुना तेज है। अपनी तकनीक का उपयोग करते हुए उन्होंने दहन के दौरान नैनो कणों के निर्माण प्रक्रिया का सफल अध्ययन किया है। ये नैनोपार्टिकल हमारे दिनर्या में भोजन बनाने में जल रहे इंधन से लेकर रॉकेट और एयरप्लेन में जल रहे इंधन में उत्पन्न होते हैं और हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। रॉकेट में जलने पर यह नैनोपार्टिकल बहुत ही तीव्र प्रकृति से उत्पन्न होता है अतः इन्हे अध्ययन करना ना सिर्फ इंजन की क्षमता को समझाने में मदद करता है बल्की पर्यावरण में इसका क्या प्रभाव है ये भी समझने में मदद मिलती है।
उनकी तकनीक भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और चिकित्सा, ऊर्जा और पर्यावरण में अनुसंधान के लिए अत्यंत व्यापक हो सकती है। उदाहरण के लिए, वे परमाणु संलयन, प्लाज्मा, विस्फोट, हमारे मस्तिष्क में न्यूरॉन्स में सिग्नल ट्रांसमिशन और प्रकाश की गति से होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन कर सकते हैं।
नेचर पत्रिका के लाइट सांइस एंड एप्लीकेशन जनरल में प्रकाशित इस खोज के बारे में चर्चा करते हुए डॉ. मिश्रा ने बताया कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार द्रव्यमान और ऊर्जा प्रकाश की गति से तेज़ नहीं जा सकते हैं। प्रकाश इतना तेज़ है कि इसे हमारी आंखों से लाइव देखना संभव नहीं है और वर्तमान की पारंपरिक कैमरा तकनीकि से भी प्रकाश को लाइव नहीं देख सकते है। जबकि हमारी तकनीक इतनी तेज़ है कि यह प्रकाश के प्रसार को लाइव देख सकती है। यह तकनीक हमें विज्ञान और हमारे आसपास की प्रकृति के अनेको रहस्यों को समझने में मदद करेगी। जैसे की सूर्य के प्रकाश से पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया कैसे शुरू होती है, परमाणु संलयन के दौरान क्या होता है, अंतरिक्ष में प्रकाश कैसे फैलता है, ऑप्टिकल फाइबर द्रव्यों में प्रकाश कैसे संचरण है, विभिन्न सामग्रियों में प्रकाश कैसे यात्रा करता है।
डॉ. मिश्रा कैलिफोर्निया में नासा में 2019 से काम कर रहे हैं और वे आई.आई.टी. इंदौर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में विजिटिंग फैकल्टी रहे हैं। 2019 से वह आई.आई.टी. इंदौर में उन्नत तकनीकों का विकास कर रहे हैं और दो पी.एच.डी. छात्रों को गाईड कर रहे हैं। हाल ही में, उन्होंने आई.आई.टी. कानपुर में इंजन अनुसंधान के लिए एक उन्नत पद्धति विकसित करने में वैज्ञानिकों की मदद करना शुरू किया।
युवा वैज्ञानिक डॉ मिश्रा सठियांव ब्लाक के पैकोली निवासी किसान राजेन्द्र नाथ मिश्र के पुत्र है। उन्होंने गांव के ही अम्बेडकर प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद हाई स्कूल की शिक्षा आजमगढ़ के सठियांव इंटर मीडिएट कालेज से उर्त्तीण किए। उन्हें भारत में स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा के दौरान ही संयुक्त राज्य अमेरिका और स्वीडन में शोध करने के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त हुआ। साथ ही प्रतिष्ठित इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज समर रिसर्च फेलोशिप और एस.पी.आई.ई. स्टूडेंट आर्थर ट्रेवल्स स्कालरशिप यू.एस.ए. के प्राप्तकर्ता थे। 2010 में समर रिसर्च फैलोशिप, यूनिवर्सिटी आफ टेक्सस ऐरलांगन, यू.एस.ए., 2011 में समर फैलोशिप रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बंगलौर व गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय स्वीडन। इतना ही नहीं, डा. मिश्र ने पी.एच.डी. लुंड विश्वविद्यालय, स्वीडन से इंजीनियरिंग में, और जर्मनी में एक वैज्ञानिक के रूप में काम किया। अपनी पीएचडी के दौरान, उन्हें युवा शोधकर्ताओं के लिए पेट्रा पुरस्कार, अफोर्सक फाउंडेशन छात्रवृत्ति मिली, और वे संयुक्त राज्य अमेरिका में गॉर्डन रिसर्च कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित वक्ता थे और 2018 में उन्हें स्वीडन की सबसे ख्यातिलब्ध पोस्टडाक फैलोशिप मिली। 2020 से उन्होंने कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बतौर युवा वैज्ञानिक में कार्य करना शुरू किया। स्वीडन में गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय और जर्मनी के म्यूनिक में जर्मन संघीय सशस्त्र बल विश्वविद्यालय में अतिथि वैज्ञानिक भी रहे हैं। डॉ. मिश्रा इस सफलता के लिए कैलिफोर्निया, जर्मनी और स्वीडन में अपने सहकर्मियों को धन्यवाद देना चाहते हैं। वह अपने परिवार के सदस्यों के निरंतर समर्थन के लिए आभारी हैं। डॉ. मिश्रा ने इस उपलब्धि को अपनी दिवंगत माता स्वर्गीय ज्ञानमती मिश्रा को समर्पित किया।
युवा वैज्ञानिक की उपलब्धि पर उनके पिता राजेन्द्र नाथ मिश्र, बड़े पिता पारस नाथ, महेंद्र नाथ मिश्र व भाई अनिल मिश्र, कमलेन्द्र नाथ मिश्र, और बहनों ने मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया है और विज्ञान के क्षेत्र में भारत का नाम विश्व में रोशन करने की कामना की है।
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