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जो संस्कृत नही जानता उसका जीवन अपूर्ण है-रविन्द्र जायसवाल

जो संस्कृत नही जानता उसका जीवन अपूर्ण है-रविन्द्र जायसवाल

कैलाश सिंह विकास वाराणसी 

वाराणसी!हम लोग सदैव अपनी बोली या भाषा को ही अपना समझकर ही देश के  एक दूसरे को  अपने समझते रहे हैं।यदि भाषा की भिन्नता रही है तो लोग बंटे हुये आपस मे समझते है।भारतीय भाषा समिति इसी को जोड़ने का कार्य कर रही है।इसके पूर्व प्रधानमंत्री  श्री मोदी जी ने काशी तमिल संगमम कार्यक्रम भी इसी के लिये कराया।हमारी मातृ भाषा के संरक्षण की जरुरत है।संस्कृत भाषा से ही इसके संरक्षण होगी।यदि संस्कृत राष्ट्र भाषा होती तो आज परिदृश्य कुछ और होता।एक भाषा से समानता होता है।सभी भाषाओं की मूल संस्कृत भाषा है इसे राष्ट्र भाषा बनाने का प्रयास करना चाहिये।जिसको संस्कृत नही आती उसका जीवन अपूर्ण है।सभी को संस्कृत अवश्य पढ़ना चहिये।संस्कृत बोलने या जानने वाला समाज मे विद्वान माना जाता है।उक्त विचार आज सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी , आई ० के ० एस ० सेन्टर , संस्कृत भारतीय काशी प्रान्त एवं भारती भाषा समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में "भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा के अध्यापक एवं छात्रों मे कौशल का विकास" विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय कार्यशाला के तृतीय दिवस  को सम्पूर्ति सत्र में उत्तर प्रदेश के स्टाम्प न्यायालय एवं पंजीयन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविन्द्र जायसवाल ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया।

उन्होँने कहा कि संस्कृत देववाणी भाषा है,यह व्यवहार के रूप मे बहुत समृद्धिशली है।राष्ट्र के एकता का एक सूत्र मार्ग है।

विशिष्ट अतिथि अन्नपूर्णा मन्दिर के महंत श्री शंकरपुरी जी ने कहा कि संस्कृत मे निहित ज्ञान विज्ञान को बाहर लाकर उसके अध्ययन से ही समस्त मानवता का कल्याण होगा।संस्कृत के लोगो को जोड़ने से रोजगार सृजित होंगे।सारस्वत अतिथि प्रो पुष्पा दिक्षित ने गुरुकुलों के पुनर्जागरण करने की जरुरत है।

इसके अतिरिक्त भारतीय भाषा समिति के डॉ चन्दन श्रीवास्तव संस्कृत भारती के डॉ देवेन्द्र पण्ड्या आदि ने अपने विचार व्यक्त किये।

अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत के साथ समृद्ध राष्ट्र की परिकल्पना साकार होती है।सभी महाविद्यालयो मे सरल मानक संस्कृत का अभ्यास कराया जायेगा।

उक्त कार्यशाला में सभी प्रतिभागियों को सहभाग का प्रमाण पत्र वितरित किया गया।

 कार्यशाला के सत्र में इसके पूर्व क्रमश: संस्कृत भारती के अखिल भारतीय के सम्पर्क प्रमुख श्रीशदेव पुजारी ने व्यक्त किया।

श्री पुजारी ने कहा कि सरल मानक संस्कृत भाषा का प्रारम्भ मे आवलम्बन करना चाहिये।संस्कृत श्रवण,लेखन,पाठन  एवं सम्भाषण से यह कौशल विकसित होगा।

सत्र की अध्यक्षता ने करते हुये प्रो महेंद्र पांडेय ने कहा कि संस्कृत को आमजन की भाषा बनाने का बनाना लक्ष्य है।

संचालन डॉ नागेश पांडेय ने किया।

इस कार्यशाला में  विलासपुर से बतौर मुख्य वक्ता एवं प्रशिक्षक प्रो पुष्पा दिक्षित  ने कहा कि व्याकरण के अध्ययन के लिये पाणिनि पद्धति का अनुसरण होना चाहिये,संस्कृत आत्मज्ञान के लिये होना चाहिये।निखिल वांगमय के ज्ञान के लिये संस्कृत का अध्ययन होना चाहिये न कि भाव सम्प्रेषण के लिये हो।

सत्र की अध्यक्षता प्रो दिनेश कुमार गर्ग करते हुये बताया कि संस्कृत भाषा से ही राष्ट्र भाव का जन्म होता है।

संचालन डॉ कुन्ज बिहारी द्विवेदी।

संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान के श्री लक्ष्मी नरसिम्हन जी ने सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा संस्कृत विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमे संस्कृत को प्रत्येक व्यक्ति के हाथ तक अर्थात प्रत्येक  व्यक्ति के मोबाइल फ़ोन तक लाना होगा। संस्कृत के अध्ययन तथा अध्यापन में भी आई सी टी का प्रयोग कर हम संस्कृत को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचा सकते हैं।

सत्र की अध्यक्षता प्रो अमित कुमार शुक्ल ने कहा कि संस्कृत आत्म शान्ति की भाषा है उसके श्रवण और बोलने से सम्पूर्ण विचार शुद्ध होते हैंडॉ ब्रह्मचारी ने संचालन की! 

कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने माला,नारिकेल,अँगवस्त्रम एवं स्मृतिचिन्ह देकर मंचस्थ अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन किया।

धन्यवाद-कुलसचिव प्रो रामकिशोर त्रिपाठी व

संयोजक एवं संचालक प्रो हरिप्रसाद अधिकारी ने की

ऑनलाइन और ऑफ़लाइन 250 से अधिक लोगो ने उपस्थित होकर सहभाग किया।

विश्वविद्यालय परिवार के पूर्व कुलपति प्रो जीसी जायसवाल, प्रो रामकिशोर त्रिपाठीप्रो रामपूजन पांडेय,प्रो राघवेंद्र जी दुबे,प्रो हरिप्रसाद अधिकारी,प्रो विजय कुमार पांडेय,प्रो दिनेश गर्ग,प्रो अमित शुक्ल,डॉ विजय शर्मा,डॉ मधुसूदन मिश्र,डॉ विद्याचन्द्रा, डॉ राजा पाठक,डॉ कुप्पा विल्वेश आदि उपस्थित थे।

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