टैरिफ वार और हम
लेखक - प्रोफेसर रवि प्रताप सिंह, आचार्य, गोरखपुर विश्वविद्यालय
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा जो टैरिफ वार शुरू किया गया है और जिसके तहत कल अन्य देशों समेत भारत पर अलग-अलग तरह के उत्पादन के संबंध में 26-27 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है जो 10% के बेस टैरिफ के ऊपर लगेगा। उससे प्रत्यक्ष रूप से तो भारत पर ज्यादा बुरा प्रभाव नहीं पढ़ने जा रहा है। कृषि उत्पादों पर 26% का डिस्काउंटेड टैरिफ लगाया गया है कथित रूप से भारत के द्वारा अमेरिका से आयत 52% पर टैरिफ के जवाब में। इसी प्रकार स्टील, वस्त्र, वाहनों, मोबाइल आदि पर भी 27% के करीब टैरिफ लगाए गए हैं। पर प्रतिस्पर्धी देशों यथा चीन वियतनाम, बांग्लादेश, कंबोडिया, श्रीलंका, पाकिस्तान, जापान, कोरिया इत्यादि पर और भी ऊंची दरों से कर लगाए गए हैं। इस लिहाज से भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में जितने मंहगे होगे इन प्रतिस्पर्धी देशों के उत्पादन और भी मंहगे होगे अर्थात अपेक्षाकृत भारतीय उत्पाद सस्ते ही पड़ेंगे। ट्रंप की नीतियों का एक परोक्ष प्रभाव यह भी होने जा रहा है कि इससे विश्व अर्थव्यवस्था में चीन के प्रभुत्व में कमी आएगी। लेकिन टैरिफ वार के परोक्ष प्रभाव भारत पर अधिक पड़ेंगे क्योंकि इससे संभव है कि दुनिया के अन्य देशों के साथ ही साथ भारत से भी अमेरिका के व्यापार में गिरावट आ सकती है। भारत को यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि के देशों में अपने व्यापार बढ़ाने पड़ सकते हैं। खासकर यूरोपियन यूनियन में अच्छी सम्भावना मानी जा रही है। घरेलू बाजार में भी अपने उत्पाद खपाने पड़ सकते हैं। टैरिफ वार के साथ ही अमेरिकी सरकार द्वारा अपने घरेलू बाजार में अन्य प्रकार के जो प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं उसके सेवा क्षेत्र यथा आईटी सेक्टर पर भी काफी प्रभाव ऋणात्मक रूप में पड़ने की संभावना है। अमेरिका कुछ स्पष्ट घोषणाओं के साथ ही अन्य नीतियां भी थोपने का प्रयास करता है जैसे भारत के ऊपर दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है कि युद्ध व प्रतिरक्षा के सारे साजो सामान अमेरिका से खरीदें रूस या किसी ने देश से नहीं भले ही रूस या उसके मित्र देश सस्ते तथा अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद उपलब्ध करा दे। इस तरह की नीतियों के दूरगामी प्रभाव पड़ते सकते हैं। इन परिस्थितियों में क्या किया जाए इस पर प्रउत विचारधारा कई उपयोगी सुझाव देती है:
1) कच्चे माल का स्थानीय स्तर पर उपयोग हो, केवल पक्के माल बाहर निर्यात किए जाएं।
2) आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं में आत्मनिर्भरता होनी आवश्यक है।
3) स्थानीय संसाधनों के उपयोग की कुशलता व गुणवत्ता की ओर सही ढंग से ध्यान देना होगा। कुशलता व विश्व स्तर की गुणवत्ता तभी बढ़ेगी जब भ्रष्टाचार व साधनों की बरबादी कम होगी तथा सेवाओं में निष्ठा व जागरुकता होगी। लाख दावों के बावजूद हमारे यहां सेवा प्रदाता कहीं न कहीं सेवा में गंभीर चूक करते हैं वह सारे किए करें पर पानी फिर देती है। अभी मैं आज ही गोरखपुर शहर की एक बहुत ही प्रसिद्ध मिठाई की दुकान से लस्सी लेने गया। लस्सी बनानेवाले ने दही का कुछ हिस्सा पतीले के बाहर चिपकने पर उसे पतीले के मुंह पर तीन उंगलियों से काछने लगा जिसपर मैंने उसे टोका कि ऐसा करना अच्छी बात नहीं है, सारे काम पर पानी फेर रहे हो पर उसने मेरी बात की अनसुनी की तो मैं भी बिना लिए वापस चल दिया।
4) उत्पादों व सेवाओं में बेहतर टेकनालॉजी का उपयोग।
5) अपनी प्रतिभाओं को अपने देश में बेहतर अवसर व सम्मान।
6) किसी एक देश पर निर्भरता कम करना।