कैलाश सिंह विकास वाराणसी
वाराणसी, 17 अक्टूबर। भारत की सनातन संस्कृति में रामलीला का अहम स्थान रहा है और इस संस्कृति को त्रिनिनाड और टैबेगो में बसे भारतीय मूल के लोगों ने संरक्षित करने के लिए पिछले 140 वर्षो से वहॉ रामलीला का मंचन कर रहे है। उक्त बातें त्रिनिनाड एवं टैबेगों के प्रख्यात शिक्षाविद् एवं त्रिनिनाड की रामलीला विशेषज्ञ डॉ. रामनारायण बालकरण सिंह ने सोमवार को डीएवी पीजी कॉलेज के इतिहास विभाग के तत्वावधान में आयोजित ‘त्रिनिनाड की रामलीला‘ विषयक अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता कही। डॉ. बालकरण सिंह ने कहा कि भारतीय डायसपोरा भले ही 175 वर्ष से अधिक समय से यहॉ रह रहा है लेकिन आज भी अपनी मूल भारतीय संस्कृति से जुड़़ा हुआ है तो उसमें रामलीला का अहम योगदान है। त्रिनिनाड की रामलीला का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि लगभग 140 वर्षो से वहॉ रामलीला के मंचन का प्रमाण मिलता है जिसमें भारतीय डायसपोरा गन्ने के खेत को साफ कर उसमें रामलीला का मंचन करते थे। त्रिनिनाड में 37 फीसदी आबादी भारतीय है जो आज भी अपनी माटी से जुड़े है। उन्होंने कहा कि 21 वीं शताब्दी में पूरे त्रिनिनाड में 35 जगहों पर रामलीला आयोजित होती है जिसमें कुल 1500 से 2000 कलाकार प्रतिभाग करते है। वहीं इसके दर्शकों की संख्या ढ़ाई से तीन लाख के बीच है। वहॉ भी रामलीला प्रत्येक वर्ष आश्विन मास में ही आयोजित होती है जो कि 10 से 14 दिन तक चलती है। उन्होंने यह भी कहा कि त्रिनिनाड की रामलीला ने पुरूष व्यास की धारणा को तोड़ा है और महिला व्यास को भी बराबरी का स्थान दिया है। वहॉ रामलीला तुलसीकृत रामचरित मानस के आधार पर ही होती है, जिसे पहले हिन्दी से भोजपुरी और फिर अंग्रेजी में अनुवाद कर मंचित किया जाता है।
त्रिनिनाड से ही आये भारतवंशी संगीतकार एंथनी मनबोध ने कहा कि लोक संस्कृति को जिवित रखने के लिए संगीत का अहम स्थान है, इसलिए हम वहॉ एक बड़े समूह में भारतीय शास्त्रीय संगीत की विधाओं के जरिए आपस में एक दूसरे के साथ जुड़े रहते है। वहीं त्रिनिनाड के ही साफ्टवेयर इंजिनियर दीपक मनोहर ने पखावज की प्रस्तुति दी। उन्होंने सबसे पहले चौताल में निबद्ध प्रस्तुति दी उसके बाद त्रिताल एवं आदिताल में बंदिश प्रस्तुत कर खूब तालियॉ बटोंरी। वहॉ के उद्यमी हेमराज रामदत्त ने भी विचार व्यक्त किया। अध्यक्षता उपप्राचार्य प्रो. सत्यगोपाल जी ने किया।
कार्यक्रम का संयोजन विभागाध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार चौधरी ने किया। संचालन डॉ. शशिकान्त यादव, स्वागत डॉ. शोभनाथ पाठक एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संजय कुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से प्रो. विक्रमादित्य राय, डॉ. प्रतिभा मिश्रा, डॉ. नजमूल हसन आदि सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएॅ उपस्थित रहे।
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