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संस्कृत भाषा से ही राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ा जा सकताहै

संस्कृत भाषा से ही राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ा जा सकताहै


कैलाश सिंह विकास वाराणसी 

वैश्विक पटल पर संस्कृत के माध्यम से ही हम स्थापित हो सकते हैं

वाराणसी!विश्व के अनेक ऐसे देश हैं जहां पर उस देश की अपनी भाषा है,इसी प्रकार भारत की भी एक मात्र भाषा संस्कृत होनी चाहिये।जिसमे समग्र व्यवहार समाहित है।संस्कृत को सरल संस्कृत भाषा के रूप मे स्थापित करने आवश्यकता है।संस्कृत के वर्णोच्चार इतना स्पष्ट है जो अन्य भाषा में दुर्लभ है।भारत के विशिष्ट अनेक प्रद्योगिकी संस्थानों मे संस्कृत भारती  शिविर के माध्यम से संस्कृत के महत्व की उपयोगिता का प्रचार-प्रसार है।आज उन संस्थानों के वैज्ञानिक गण संस्कृत मे निहित वैज्ञानिक ज्ञान तत्व पर शोध कर रहे हैं।यहां पर भी संस्कृत शास्त्रों मे निहित ज्ञान सार को वैज्ञानिक तत्वों    का सरल भाषा माध्यम से शोध कार्य करायें।

उक्त विचार आज सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी, तथाआई ० के ० एस ० सेन्टर , संस्कृत भारतीय काशी प्रान्त एवं भारती भाषा समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में पाणिनी भवन सभागार में  "भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा के अध्यापक एवं छात्रों में कौशल का विकास" विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र  में बतौर मुख्य अतिथि अखिल भारतीय संगठन मंत्री के दिनेश कामत ने व्यक्त किया। 

मुख्य अतिथि दिनेश कामत ने कहा कि भारतीय भाषाओं की पोषक भाषा के रूप में तथा भारत को एक सूत्र मे बांधने में संस्कृत भाषा है।

बतौर विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश के पूर्व पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री/विधायक नीलकंठ तिवारी ने संस्कृत संस्कृति एवं संस्कार का प्रवाह पर पर विचार प्रकट करते हुये कहा कि संस्कृत देववाणी भाषा है इसमें चारो पुरुषार्थ समाहित है।संस्कृत भारत मे अनेकों आक्रांताओं के बावजूद भी आज चिर रूप मे स्थापित है।दुनियाँ की सभी भाषाओं का मूल संस्कृत है।संस्कृत को नासा ने कम्प्यूटर की सुगम भाषा माना है।इसमे भाव व भाषा की शुद्धता है।संस्कृत भाषा से ही राष्ट्र को एक किया जाता है।भारत  के सम्पूर्ण दिशाओं को एक करती है।

बतौर सारस्वत अतिथि  महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ , वाराणसी के कुलपति प्रो . आनन्द के . त्यागी ने कहा कि संस्कृत भाषा मे हमारे सम्पूर्ण भारतीय ज्ञान परम्परा समाहित है।राष्ट्रीय शिक्षा निति-2020 के अन्तर्गत यह कार्यशाला आधार विन्दु है।संस्कृत शास्त्रों मे प्रद्योगिकी ज्ञान,औषधि ज्ञान आदि समाहित है।संस्कृत शास्त्रों में भारत की आत्मा समाहित है।आज विदेशों मे इसी पर कार्य शोध किया जा रहा है।आज युवाओं को संस्कृत की तरफ जोड़ने के लिये तकिनिकी ज्ञान को समाहित करने की जरुरत है।आज संस्कृत को आगे बढाने के लिये अन्य भाषाओं एवं शास्त्रों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की जरुरत है।आज संस्कृत विद्वानों को इसके लिये समीक्षा करने जरुरत है।इस भाषा को आगे बढाने के लिये विभिन्न प्रकल्प है! 

 बतौर सारस्वत अतिथि संस्कृत भारती के काशी प्रान्ताध्यक्ष प्रो कृष्ण कान्त शर्मा ने कहा कि संस्कृत भाषा के अध्येता उत्तम विश्लेषक होता है।क्यो कि संस्कृत भाव सम्प्रेषण को अद्भूत नियमावलियो का उल्लेख है।इसमे व्याकरण शास्त्र  मे भी विश्लेष्ण की प्रक्रिया के वर्धन पर कार्य करने की जरुरत है।यहां की असमिया,बंग्ला,उडिया भाषा मे 80 प्रतिशत संस्कृत के शब्द हैं।इस भाषा का सौंदर्य उत्तम है।जो की मन को आकृष्ट करता है।

अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत भाषा को जनभाषा बनाने के लिये संस्कृत भारती का प्रयास अत्यंत शोभनीय हैइससे भारतीय संस्कृति को जन जन में प्रसारित होगा।संस्कृत भाषा भारत की शोभा और आत्मा है इसमें दुनिया के सारे ज्ञान तत्व निहित हैं।वैश्विक पटल पर संस्कृत के माध्यम से ही हम स्थापित हो सकते हैं। 

वैदिक मंगलाचरण- डॉ विजय कुमार शर्मा।पौराणिक-डॉ मधुसूदन मिश्र ने किया! मंचस्थ अतिथियों ने दीप प्रज्वलन एवं माँ सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।

कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने माला,नारिकेल,अँगवस्त्रम एवं स्मृतिचिन्ह देकर मंचस्थ अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन किया।स्वागतप्रो रामकिशोर त्रिपाठी।विषय प्रवर्तन प्रो रामपूजन पांडेय।धन्यवाद ज्ञापन डॉ नीतिन आर्य, ने किया! 

संयोजक एवं संचालन प्रो हरि प्रसाद अधिकारीकी! 

संगोष्ठी में सर्वश्रीप्रो रामपूजन पांडेय,प्रो हरिशंकर पांडेय,प्रो हरिप्रसाद अधिकारी (संयोजक), प्रो सुधाकर मिश्र,प्रो रमेश प्रसाद,प्रो महेंद्र पांडेय,प्रो विधु द्विवेदी,प्रो राजनाथ,प्रो अमित शुक्ल,प्रो हीरक कान्त,प्रो दिनेश गर्ग,डॉ विद्या चन्द्रा,डॉ रविशंकर पांडेय,डॉ नीतिन आर्य,डॉ विजेंद्र आर्य आदि उपस्थित थे।

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