नरमुंड की माला, चिताओं की राख और भूत-पिशाचों का तांडव: वाराणसी में मसाने की होली का अनूठा रंग
वाराणसी: होली का त्योहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन काशी की "मसाने की होली" का अलग ही रंग होता है। यहाँ रंग और गुलाल के बजाय चिताओं की राख उड़ाई जाती है, और नरमुंड की मालाएं पहने नागा साधु व तांत्रिक भूत-पिशाचों के संग नृत्य करते हैं। इस अनोखे आयोजन को देखने के लिए करीब 5 लाख श्रद्धालु वाराणसी पहुंचने वाले हैं।
क्या है मसाने की होली?
वाराणसी में मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर मसाने की होली खेली जाती है। यह परंपरा शिवभक्त अघोरी और नागा संन्यासियों से जुड़ी है, जो मानते हैं कि मृत्यु और जीवन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस दौरान, नागा साधु चिताओं की राख को एक-दूसरे पर मलते हैं, और नरमुंड की माला पहनकर तांडव करते हैं।
माना जाता है कि खुद भगवान शिव भी भूत-पिशाचों के संग इस होली में शामिल होते हैं। इसलिए इसे "मसाने की होली" कहा जाता है।
क्यों खास है वाराणसी की मसाने की होली?
- चिताओं की राख से खेली जाती है होली
- नागा साधु, अघोरी और तांत्रिक करते हैं भूत-पिशाचों संग तांडव
- मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर हजारों लोग इसे देखने आते हैं
- इस आयोजन में करीब 5 लाख श्रद्धालुओं के शामिल होने की उम्मीद
- मंत्रोच्चारण, तांत्रिक अनुष्ठान और शिव तांडव से गूंजता है काशी
अघोरी साधुओं की तंत्र साधना
इस दिन अघोरी साधु और नागा बाबा तंत्र सिद्धियां भी करते हैं। वे भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शमशान में हवन और अनुष्ठान करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन की गई साधना जल्दी फल देती है और साधु सिद्धियों की प्राप्ति के लिए यहां एकत्र होते हैं।
5 लाख श्रद्धालु होंगे शामिल
वाराणसी प्रशासन के अनुसार, इस साल करीब 5 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। घाटों पर सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं और पुलिस बल की तैनाती की गई है।
निष्कर्ष
काशी की मसाने की होली केवल रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और रहस्यमयी परंपराओं का प्रतीक है। यहाँ शिव के भक्तों की भक्ति, तंत्र का रहस्य और मृत्यु को जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा मानने की सीख मिलती है। अगर आप वाराणसी में हैं, तो इस अनोखी होली का अनुभव जरूर लें।