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मणिकर्णिका घाट पर मनाई जाएगी 'मसाने की होली': चिता की राख से खेला जाएगा अनोखा पर्व

मणिकर्णिका घाट पर मनाई जाएगी 'मसाने की होली': चिता की राख से खेला जाएगा अनोखा पर्व

वाराणसी का प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट एक बार फिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए सुर्खियों में है। यहां हर साल की तरह इस बार भी मसाने की होली का आयोजन किया जाएगा, जहां लोग गुलाल के बजाय चिता की राख से होली खेलते हैं। यह आयोजन काशी की परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है।

क्या है मसाने की होली का महत्व?

मसाने की होली का आयोजन महाशिवरात्रि के बाद फाल्गुन मास में किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन स्वयं भगवान शिव अपने गणों के साथ श्मशान भूमि में आकर मसाने की होली खेलते हैं। इसे काशी का अद्भुत पर्व कहा जाता है, जो जीवन और मृत्यु के दर्शन को प्रस्तुत करता है।

कैसे होती है मसाने की होली?

  • इस विशेष आयोजन के दौरान मणिकर्णिका घाट पर चिताओं की राख को गुलाल की तरह उड़ाया जाता है।
  • भूत-पिशाचों का रूप धरकर लोग तांडव नृत्य करते हैं।
  • शिव भक्तों के साथ नागा साधु भी इस आयोजन में शामिल होते हैं, जो शिव तांडव के मंत्रों का जाप करते हुए होली खेलते हैं।
  • आयोजन के दौरान डमरू, शंख और काशी के पारंपरिक संगीत की धुन माहौल को अद्भुत बना देती है।

महिलाओं को क्यों नहीं मिलती इजाजत?

इस आयोजन में महिलाओं को शामिल होने की इजाजत नहीं होती। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मसाने की होली मृत्यु के बाद के जीवन और भगवान शिव के गणों के लिए समर्पित होती है, जिसमें केवल पुरुष ही शामिल होते हैं।

श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र

हर साल यह आयोजन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। काशी के स्थानीय लोग और देश-विदेश से आए पर्यटक इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए मणिकर्णिका घाट पर जुटते हैं।

निष्कर्ष

मसाने की होली वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत का एक अद्भुत पर्व है, जो जीवन-मृत्यु के सत्य को दर्शाता है। यह आयोजन हमें सिखाता है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं बल्कि एक नई शुरुआत है।

 

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