काशी में जलती चिता की राख की होली: नागाओं का तांडव और डमरू की गूंज
वाराणसी (काशी) में होली का अनोखा और रहस्यमयी रूप देखने को मिला, जहां मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं की राख से होली खेली गई। इस अनूठे आयोजन में नरमुंड पहने नागा साधुओं ने तांडव करते हुए अद्भुत नजारा पेश किया।
राख की होली का रहस्यमयी अंदाज
हर साल महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर नागा साधु चिता की राख से होली खेलते हैं। इस बार भी यह परंपरा बड़े ही भव्य रूप में आयोजित की गई। डमरू, शंख और घंटियों की आवाज़ के बीच नागा साधुओं ने तांडव किया, जिससे वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो गया।
नरमुंड धारण कर किया गया तांडव
नागा साधु सिर पर नरमुंड (मानव खोपड़ी) धारण कर भगवान शिव की भक्ति में लीन दिखे। उन्होंने राख को एक-दूसरे पर उछालते हुए शिव के प्रिय भस्म होली का आयोजन किया। मान्यता है कि यह राख जीवन-मृत्यु का प्रतीक है और इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
विदेशी पर्यटकों के लिए खास आकर्षण
इस अद्भुत आयोजन को देखने के लिए करीब 2 लाख विदेशी पर्यटक वाराणसी पहुंचे। अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया सहित 25 देशों के सैलानी इस अलौकिक होली के गवाह बने। पर्यटकों ने नागा साधुओं के तांडव को अपने कैमरों में कैद किया और भारतीय संस्कृति के इस अनोखे पहलू को समझने का प्रयास किया।
शिव नगरी का अलौकिक अनुभव
काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के बाद कई श्रद्धालु मणिकर्णिका घाट पहुंचे और इस अद्भुत होली को देखने के साथ भस्म का तिलक भी किया।
काशी की होली का महत्व
वाराणसी में मनाई जाने वाली भस्म होली शिवभक्तों के लिए अद्भुत धार्मिक अनुभव है। मान्यता है कि इस राख से शरीर पर लगाने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और सुख-समृद्धि आती है।