काशी में मसाने की होली: जलती चिताओं की राख से खेली गई अनोखी होली
भारत के पवित्र शहर वाराणसी (काशी) में होली का त्योहार एक अलग ही रूप में मनाया जाता है। यहां की प्रसिद्ध मसाने की होली न सिर्फ अद्भुत बल्कि रहस्यमयी भी होती है। इस वर्ष करीब 5 लाख श्रद्धालु इस अनोखी परंपरा का हिस्सा बने, जहां जलती चिताओं की राख, नरमुंडों की माला और भयावह माहौल के बीच भक्तों ने शिव की भक्ति में डूबी होली खेली।
मसाने की होली का अनोखा अंदाज
काशी के मणिकर्णिका घाट पर आयोजित मसाने की होली में नागा साधु और अघोरी परंपरागत ढंग से इस त्योहार को मनाते हैं। इस होली में गुलाल और रंगों की जगह चिताओं की राख का उपयोग होता है। श्रद्धालु एक-दूसरे पर राख मलते हैं और इसे शिव भक्ति का प्रतीक मानते हैं।
अघोरियों की रहस्यमयी होली
इस आयोजन में अघोरी साधु अपने विशिष्ट अंदाज में भाग लेते हैं। कुछ अघोरी अपने गले में नरमुंडों की माला पहनकर नृत्य करते नजर आए, जबकि कुछ साधु अपने दांतों के बीच जिंदा सांप दबाए हुए दिखाई दिए। वहीं, कुछ साधु हाथों में मानव हड्डियां लेकर तांडव करते हुए देखे गए।
शिव की भक्ति का अनूठा पर्व
मसाने की होली के दौरान भूतभावन शिव के जयकारे गूंजते रहे। भक्तों ने "हर हर महादेव" का जयघोष करते हुए घाट पर अपनी श्रद्धा व्यक्त की। इस आयोजन का धार्मिक महत्व है, जिसमें मृत्यु को महज एक बदलाव मानते हुए उसे भय की जगह उत्सव का रूप दिया जाता है।
विदेशी पर्यटकों की बढ़ती दिलचस्पी
इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए देश-विदेश के हजारों पर्यटक वाराणसी पहुंचे। अमेरिका, जापान, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया से आए सैलानियों ने भी इस रहस्यमयी होली का अनुभव किया।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
इस आयोजन को सुरक्षित बनाने के लिए प्रशासन ने घाटों पर अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की थी। पुलिसकर्मियों और ड्रोन कैमरों के जरिए हर गतिविधि पर नजर रखी गई।
मसाने की होली का महत्व
इस आयोजन को मृत्यु और जीवन के बीच के भेद को समाप्त करने का प्रतीक माना जाता है। शिव भक्त इसे मोक्ष का मार्ग मानते हैं और इस अनोखी होली में शामिल होकर खुद को धन्य महसूस करते हैं।