होली 2025: क्यों मनाते हैं होली का त्योहार? जानिए इसका इतिहास, महत्व और उत्सव का तरीका
होली का त्योहार भारत में एक प्रमुख पर्व है, जिसे रंगों का उत्सव भी कहा जाता है। यह पर्व फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं होली का इतिहास, महत्व और इसे मनाने की परंपराएं।
होली का इतिहास
होली का इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। इसके पीछे सबसे प्रसिद्ध कथा प्रह्लाद, हिरण्यकश्यप और होलिका की है। हिरण्यकश्यप, जो अहंकारी राजा था, चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को आदेश दिया, जिसके पास आग में न जलने का वरदान था। होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भक्त प्रह्लाद की भक्ति के कारण वह बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई। तभी से होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है।
होली का धार्मिक महत्व
होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह प्रेम, भाईचारे और सौहार्द का प्रतीक भी है। इस दिन लोग पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं और रंगों से सराबोर होते हैं।
होली मनाने का तरीका
- होली का पहला दिन: इसे होली दहन कहा जाता है, जहां लकड़ियां और उपले जलाकर होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- होली का दूसरा दिन: जिसे धुलेंडी कहा जाता है, इसमें लोग एक-दूसरे को रंग, गुलाल और पानी डालकर रंगीन कर देते हैं।
होली के विशेष पकवान
होली के मौके पर घरों में गुजिया, ठंडाई, मठरी, पापड़, और भांग जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं, जो इस त्योहार के स्वाद को दोगुना कर देते हैं।
निष्कर्ष
होली केवल एक त्योहार ही नहीं, बल्कि यह जीवन में खुशियों के रंग भरने का संदेश देती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रेम, सद्भाव और एकता के रंगों से ही जीवन खिल उठता है।