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आपरेशन सिन्दूर के क्रम में कोरोना और भागवत धर्म

आपरेशन सिन्दूर के क्रम में कोरोना और भागवत धर्म

 

लेखक - डॉ आर पी सिंह आचार्य वाणिज्य विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय 

कोरोना पांच साल पुराने दिनों की याद दिलाते हुए समूची दुनिया को पुनः डराने लगा है। सिंगापुर और हांगकांग जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इसका प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। किन्तु घनी आबादी के बावजूद हमारे देश ने कोरोना को पिछली बार हराकर भगा दिया था और इस बार भी अगर वह यहां पर आया तो निश्चित भागने के लिये विवश होगा। कारण है! मानव मात्र के हितार्थ भागवत धर्म का पालन करने वाला भारत चिरकाल से औरों से व्यापक दृष्टि रखता रहा है। इसका असर हम सभी की सनातनी संस्कृति तथा जीवन शैली विशेषकर खानपान पर  पड़ना स्वाभाविक ही है। बहुत से लोग हिन्दू धर्म और सनातन धर्म की बात करते हैं। लेकिन इन दोनों की अपेक्षा भागवत धर्म की अवधारणा अधिक युक्ति संगत और समावेशी है। 
मेरी बात अभी अटपटी लग सकती है लेकिन समय के साथ लोग इसी को ज्यादा उचित मानेंगे जैसा कि अन्य मामलों में हो रहा है। एक दशक पूर्व मैंने आरक्षण के सम्बन्ध में लिखा था कि जितने भी जातीय संगठन हैं उन सभी को प्रतिबंधित करना देना चाहिए भले ही वे अपनी जाति या समुदाय (कम्यूनिटी) में सुधार के नाम पर बने हों। ये संगठन जाति को स्थायित्व प्रदान करते हैं। इनके नेता प्रकारान्तर से अपना मान-यश बढ़ाने के लोभ में जातीय अहंकार का पोषण करते हैं। इन जातीय संगठनों ने देश के लोकतंत्र को लम्बे समय से पटरी से गिराया हुआ है। समूची लोकतांत्रिक प्रक्रिया जातीय समीकरणों पर आश्रित रही है। आज राष्ट्रवादी यह बात मान चुके हैं और जातीय संगठनों को समाप्त कर एकता लाने की बात खुलकर कह रहे हैं। 
उसी समय से मैं यह भी लिखता रहा हूं कि जाति को समाप्त करना अपरिहार्य है और ऐसा करने के लिये जातीय जनगणना की भी परोक्ष आवश्यकता है। अच्छी बात है कि सरकार  जातीय जनगणना की आवश्यकता कुछ दिनों पहले स्वीकार कर चुकी है। यह भी लिखा था कि आगे के सभी सजातीय विवाहों को विधानतः अमान्य कर देना होगा।
पहलगाम की आतंकी घटना के तुरंत बाद मैंने उल्लेख किया था कि पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र है। पाकिस्तान का अस्तित्व पूरी दुनिया के लिए खतरा है। अतः दुनिया में शांति और प्रगति के रास्ते पर चलने वाले सभी देशों को पाकिस्तान और उसके द्वारा समर्थित आतंकियों व देशों के अस्तित्व को समाप्त करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ होना होगा।
यह अच्छी बात है कि देश के रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह जी ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को सभी देशों के व्यापक नियंत्रण में लाने का प्रस्ताव रखा है ताकि इन हथियारों तक गैरजिम्मेदार आतंकी हाथों में जाने से बचाया जा सके। इसे सीधे अमल में लाना अभी कठिन लग रहा है। परन्तु पाकिस्तान की सेना व सरकार को आतंकी संगठनों से अलग कर पाना संभव नहीं है इसलिए अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए विश्व के सभी देशों को दो कदम उठाने ही होंगेः
1) पाकिस्तान और उसके समर्थक देशों पर वैश्विक अंकुश और सीधा हस्तक्षेप सुनिश्चित करना होगा ठीक वैसे ही जैसे ओसामा बिन लादेन को मारने के लिये अमेरिका ने किया था और हाल में उसके आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए भारत ने किया। इसी प्रयास में उसके परमाणु हथियारों और ठिकानों पर भी वैश्विक नियंत्रण स्थापित हो जाएगा। आवश्यक लगे तो इस निमित्त राष्ट्रीय सीमाओं से परे विश्व सरकार स्थापित कर 'वसुधैव कुटुम्बकम' तथा 'स्वदेशो भुवनत्रय' के संकल्प को साकार करें। 
2) इसमें कोई सन्देह नहीं है कि आपरेशन सिन्दूर के तहत रूस प्रदत्त S-400 इजरायल के आयरन डोम से कहीं अधिक कारगर साबित हुआ। इसी प्रकार हमारी मिसाइलें आक्रामक क्षमता में अचूक व अनुपम साबित हुई हैं।  इनके प्रदर्शन ने भारत से दुनिया के करीब सौ देशों यानी आधी दुनिया में हथियारों की मांग और निर्यात से आय अर्जन की सम्भावनाएं काफी बढ़ा दी है। किंतु निर्यात में  ध्यान रखना होगा कि ऐसे लोगों को ये इन अति उन्नत किस्म के हथियार आपूर्ति न हो जो भारत के ही खिलाफ इस्तेमाल करने लगें या मानवता के लिये खतरा साबित हों। 
3) दुनिया के हित में है कि कोई एक मजहब, सम्प्रदाय या पंथ पूरी दुनिया पर अपनी सनक थोपने, एक रंग में रंग देने और हजारों वर्षों से अथाह प्रयास कर विकसित की गई विविधताओं को समाप्त करने की हिमाकत करे, इससे बचाव हेतु मानव धर्म के सर्व समावेशी भागवत संकल्प को लेकर आगे बढ़ें।
अब पुनः भागवत धर्म पर वापस आते हैं। पहले ऋषियों ने मानवमात्र के लिये एक ही धर्म स्थापित किया था जिसका उद्देश्य था मन का विस्तार कर वृहद सत्ता से युक्त करना।  बुद्ध के आगमन से मिल रही चुनौतियों का सामना करने हेतु अनुमानतः दूसरे ईसा पूर्व से दूसरे ईसा सदी के दौरान मनुस्मृति रची गयी जिसमें पूर्व स्थापित धर्म व संस्कृति के संरक्षण सनातन धर्म व सनातन परम्परा की बात आयी। मनुस्मृति के चौथे अध्याय के एक श्लोक (138) में धर्म सनातन की सत्यमूलक अवधारणा  दी गयी जिसे भृगु ऋषि के हवाले से मानव धर्म के प्रसंग में समझाने के प्रयास के तौर पर सम्पूर्ण आखिरी (12वें) अध्याय अर्पित है। आगे 8-10वीं ईसवी सदी में रचित भागवत पुराण में छः श्लोकों में इस सनातन व मानव धर्म  की अवधारणा को सन्दर्भित करते हुये इन्हें भागवत धर्म के स्तर पर उन्नीत किया गया। भगवान बुद्ध ने ईश्वर की बात नहीं की पर पुनर्जन्म को माना है। सवाल है कि हम अपनी भौतिक इन्द्रियों से ईश्वर  को नहीं देखते हैं तो इन भौतिक इन्द्रियों से पुनर्जन्म को भी तो नहीं देख सकते। इसलिए भारत के समन्वित विचार दर्शन में बौद्ध मत भी पूरी तरह युक्ति संगत नहीं पाया गया। किसी भी एक विचार को चाहे वह पूर्णतः दोषमुक्त ही क्यों न लगता हो, सभी पर जबरन थोपने की मानसिकता दुनिया के लिए स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। लेकिन सनातन में भी शाश्वत विचारों के साथ रूढ़ियों और वर्चस्ववादी जड़ताओं का घालमेल हुआ जिसकी भारत के भीतर ही गाहे-बेगाहे प्रतिक्रिया व बदलते समय के साथ टकराव उभर जाता है। 
इन सब बातों को ध्यान में लेते हुए आगे चलकर पूर्वोल्लिखित भागवत पुराण जैसा रोचक ग्रंथ सामने आया जिसमें भगवान कृष्ण की लीलाएं व विचार दृष्टि रखी गयी। इसमें भगवद्गीता गीता समेत उस भागवत शास्त्र की सम्पूर्ण मानवता के भगवत्ता की ओर उन्नयन दृष्टि का भी समाहार हुआ जिसका प्रादुर्भाव व प्रतिपादन हजारों साल पहले महाभारत काल में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने पूरी सृष्टि के कल्याणार्थ किया था। 
आज दुनिया के सामने भारत की यह महान कल्याण कारी सम्पदा बिखेरने की आवश्यकता है। मैं समझता हूं कि यह कार्य भागवत धर्म के बैनर तले ज्यादा सुगम और न्यूनतम प्रतिरोध के साथ सम्भव होगा।

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