विश्वपति वर्मा ;
साल 2005 में महात्मा गाँधी राष्ट्रिय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) लागू होने के बाद गांव - देहात के लोगों में एक बड़ी जिज्ञासा जाग उठी थी कि अब घर बैठ कर भी गरीब आदमी बेशिक खर्चों की जरुरत को पूरा करने के लिए थोड़ा -बहुत कमाई गांव में रहकर कर लेगा। क्योंकि सरकार द्वारा 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने के लिए गारंटी कानून जो लाया गया था।
ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मिलने वाली इस योजना में जाबकार्ड के माध्यम से 100 दिन रोजगार पाने की गारंटी दी गई है जिसका नींव यूपीए सरकार में रखा गया था। लेकिन इस समय एक गंभीर सवाल का जवाब हम नहीं खोज पा रहे हैं कि क्या जाबकार्ड धारक को 100 दिन का रोजगार मिल रहा है ?इतना ही नहीं मनरेगा को यूपीए की विफलताओं का स्मारक बताने वाली मोदी सरकार ने अब मनरेगा के तहत मिलने वाले रोजगार दिवस की संख्या में 50 फीसदी का इजाफा कर दिया है जो मुख्य रूप से सूखाग्रस्त इलाकों में लागू हुआ है ।
16 सितंबर 2015 को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में मनरेगा में रोजगार दिवस की संख्या 100 से बढ़ाकर 150 दिन सालाना करने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई। इसका मतलब ये है कि मनरेगा योजना के तहत सूखाग्रस्त इलाकों में हर जॉब कार्डधारी परिवार को हर साल अब 50 दिन का बोनस काम भी मिलेगा। सुनने में ये फैसला बहुत अच्छा लग रहा है कि लेकिन इस ऐलान और जमीनी हकीकत में बहुत बड़ा फासला है जिस पर गौर करना जरूरी है।
बड़ा सवाल ये है कि साल 2005 से जब से नरेगा (बाद में मनरेगा) कानून लागू हुआ, तब से 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराने का वादा किसी भी ब्लॉक या जिले में 100 फीसदी पूरा हुआ क्या? अगर इसका जवाब कार्डधारी और अधिकारी से माँगा जाये तो जवाब है नहीं, जब सरकार और सिस्टम 100 दिनों का रोजगार सभी मनरेगा जॉब कार्डधारी परिवार को उपलब्ध नहीं करा पाई तो 150 दिनों का रोजगार देने का ऐलान करना कहीं सिर्फ सुर्खियां बटोरने का एक बहाना तो नहीं है ! ये शंका इसलिए है क्योंकि पिछले 10 साल का मनरेगा का रिकॉर्ड हैरान-परेशान करने वाला नजर आता है।
क्या आप यकीन कर पाएंगे कि हर मनरेगा जॉब कार्डधारी परिवार को 100 दिनों के रोजगार का कानूनी अधिकार देने वाली सरकार में दो फीसदी रोजगार भी नहीं मिल पाया है जबकि कई ब्लाकों की स्थिति यह है कि कागजों में 100 दिन का रोजगार कार्डधारी को मिल गया है। इस खेल का राज आप भी जानते होंगे कि यंहा पर बिना काम कराये भुगतान ले लिया गया सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो 2012 के बाद से मनरेगा की हालत लगातार ख़राब होती जा रही है जिसमे बजट की कटौती एवं भ्रष्टाचार में वृद्धि दिखाई दे रही है। वर्ष 2014 -15 की हालत सबसे ज्यादा खराब रही है।
योजना के तहत भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ चुका है कि गांव के गरीब परिवार को रोटी -बोटी देकर उनके हक को मारने का काम जिम्मेदार लोग कर रहे हैं ,जिसमे कार्डधारी के खाते में पैंसा डाल कर उनसे ले लिया जाता है ,बदले में उन्हें मांश -मदिरा मिल जाता है। गरीब आदमी जंहा मेहनत करके पूरा पैंसा पाना चाहता है ,वंही जनप्रतिनिधियों द्वारा वोट के समीकरण को बैठाने के लिए ऐसे लोगों के खाते में पैंसा डाला जाता है जिसका मजदूर वर्ग से कोई लेना -देना नहीं रहता है। जिसका परिणाम है कि एक तरफ जंहा बिना काम कराये भुगतान हो गया वंही गरीब परिवार काम पाने से वंचित हो गया।
आंकड़े और वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि मनरेगा में 100 दिन रोजगार देने के नाम पर केवल गरीबों के साथ शोषण हो रहा है ,न तो सरकार के पास मनरेगा में रोजगार के लिए कोई गारंटी रह गया है और न ही अब गांव के लोग गांव में रुकना चाह रहे हैं। इसी कारण से एक बार फिर मजदूर वर्ग के लोग गांव की तरफ से सीधा दूसरे प्रदेशों में रोजगार पाने के लिए पलायन कर रहे हैं ,वंही ऐसे लोग जो घर छोड़ कर बाहर न जा पाने की स्थिति में हैं उन्हें मनरेगा से काम न मिलने की वजह से दयनीय हालत में जीना पड़ रहा है।
अभी सरकार को इस बात का का ध्यान देना चाहिए कि मनरेगा में केवल 100 दिन की गारंटी लेने की बात कहने भर से काम नहीं चलेगा इसके लिए हर जिले में योजनाबद्ध तरीके से काम करने के लिए नए -नए अनुसंधान करने होंगे ,कार्डधारी को 100 दिन का सुनिश्चित रोजगार मिले इसके लिए कई और तरीके के कार्यों को करने के लिए बढ़ावा देना होगा जिसमे समग्र -समेकित विकास की योजना में श्रम करने के साथ वृक्षारोपण ,साफ -सफाई ,जागरूकता अभियान ,मजदूर किसान को मनरेगा की योजना का लाभ जिसमे जो अपने खेत में काम करता हो उसे भी मनरेगा की मजदूरी मिले जैसे अदि कार्यों को भी शामिल किया जाये ताकि केवल योजना के नाम पर पैंसे का बर्बादी पाए बल्कि योजना उद्देश्य की पूर्ति करे एवं उसपर खर्च किये गए पैंसे से धरातल पर काम नजर आये।
No comments:
Post a Comment