विश्वपति वर्मा
सुन के हंसी भी आती है और हैरान भी होना पड़ता है कि आखिर किस कानून के तहत पॉलीथिन को प्रतिबंधित किया जायेगा।
कुरकुरे की पैकिंग बदली जाएगी या अंकल चिप्स की ? या किसी डेयरी मिल्क चॉकलेट की पैकिंग नही होगी या फिर अमूल ,पारले, ब्रिटनिया के रैपर नही होंगे?हिन्दुस्तान लिवर लि.के शैम्पू,साबुन,बिस्किट के प्लास्टिक रैपर चलने देंगे या बंद हो जायेगा?
सरकार के पास कैसे कैसे सचिव हैं जिनके।पास कोई दिमाग ही नही है क्योंकि नोटबंदी की तरह इसको भी लागू करने से पहले कोई वैकल्पिक साधन नही सुझाया गया।
कैसे कोई समोसे लेने गया व्यक्ति सब्जी या चटनी कपड़े के थैले में डाल के घर लाएगा ??
ऑफिस से घर आता व्यक्ति दही को क्या अपनी जेब में डाल के लाएगा?
कहने का तात्पर्य ये है की इस पाबन्दी से सिर्फ़ घरेलू दुकानदारों की तबाही होगी। हलवाईयों का सबसे ज़्यादा नुकसान होगा। गृह उद्योग बंद हो जाएंगे।
पापड़,चकली,फरसाण बनाने वाले क्या करेंगे ? क्योंकी हल्दीराम,बालाजी को पैकिग पे तो कोई बंदी नही! घर घर बनने वाली मोमबत्ती, अगरबत्ती, पत्रावली, कपास की बाती, मसाले, अब पैकिंग के लिये क्या यूज़ करें? सरकार कुछ पर्याय दे तो बात बने ।
मोजे,टी शर्ट,ड्रेसेस,ड्रेस मटीरियल,गारमेंट,रुमाल,साड़ियाँ, धूल-मिट्टी और बरसात से बचाने हेतु किस में पैकिग करायें ??
बड़े शहर में ठीक है,, गरीब के घर की छत जब बरसात में पानी टपकाए तो वह क्या करें ?
विदेशी पिज़्ज़ा और बर्गर के साथ तो सॉस के पाउच दे दिए जाएंगे पॉलीथिन के (जिन पे कोई पाबन्दी नही) , लेकिन वह दुकान दार जिसने खुद की बनाई हुई सब्जी या चटनी बेचनी है वो क्या करेगा??
अमूल का दही भी पैक में मक्खन भी और घी भी, सब पॉली पैक में आते हैं फिर ग्राहक तो अपनी सुविधा को देखते हुए लोकल सामान खरीदेगा ही नहीं।
इस पर फिर से विचार होना जरूरी है।क्योंकि पहली बार पालीथिन पर बैन लगाने की बात नही चल रही है।
पूर्ववर्ती सरकार ने भी एक बार पालीथिन पर पाबंदी के लिए कदम उठाए हुए थे लेकिन सरकार को इस निर्णय से कोई भी फायदा नही हुआ उसके बाद भी बाजारों में पॉलीथिन का प्रयोग धड़ल्ले से होता दिखाई दिया ।क्योंकि पॉलीथिन लोगों की बहुत बड़ी जरूरत बन गई है।
अतः सरकार को पॉलीथिन बंद करने से पहले दो पहलू पर ध्यान देने की आवश्यकता है एक तो यह कि इस निर्णय के तहत केवल छोटे-मंझले कारोबारी को ही निशाना न बनाया जाए दूसरा कि बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के इतना बड़ा निर्णय लेना सुलभ नही दिखाई पड़ता सरकार को पॉलीथिन को रिसाइकिल करने की व्यवस्था पर भी ध्यान देना चाहिए।
क्योंकि रिसाइक्लिंग से तो चाइना के बल्ले बल्ले हैं प्लास्टिक कील, टायल, खिलौने,हेंगर, वह बना सकता है तो क्या भारत मे यह संभव नही है?सरकार और उनके विषेषज्ञों को इस बात पर गहराई से अध्ययन करना चाहिए कि इस पॉलीथिन के आड़ में मेक इन इंडिया का भी कुछ हिस्सा छिपा हुआ है।
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