गौरतलब है कि हर साल मॉनसून के मौसम में ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ आती है जिसके कारण पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में काफ़ी जानमाल का नुकसान होता है। जबकि अपनी सफाई मे चीन द्वारा कहा जाता रहा है कि वह पानी रोक ज्यादा भंडारण नही करता और नदी की धारा भी नहीं मोड़ रहा है और वह उन देशों के हितों के ख़िलाफ़ नहीं होगा जहां यह नदी उनके यहां से जाती है.
लेकिन हाल के वर्षों के आकडों का अध्ययन करने पर पूर्वोत्तर भारत में इस बात को लेकर डर अधिक फैला है कि चीन कभी भी काफ़ी मात्रा में पानी छोड़ सकता है। यदि ऐसा होता है तो बाढ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। असम के डिब्रूगढ़ में जहां इस नदी का सबसे चौड़ा हिस्सा है. वहां के निवासी कहते हैं कि ब्रह्मपुत्र में लगातार जल स्तर में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है और तनातनी के माहौल मे चीन ऐसा कर सकता है।
धुर्त चीन के पिछले कारनामों से हमें सीख लेने की आवश्यकता है क्योंकि डोकलाम विवाद के बाद भी चीन द्वारा पानी छोडऩे के आकडे साझा नही किए गए थे जिससे बाढ की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इस बावत पूछे जाने पर चीन द्वारा टेक्निकल समस्या का होना बताया जबकि बी बी सी के हवाले से बताया गया कि चीन ने बग्लादेश से आकडे साझा किए थे।
खतरे वाली नदी
यह नदी कैलाश पर्वत के पास से आती है । यारलुंग त्सांगपो नदी तिब्बत की सबसे बड़ी और सबसे ऊंची नदी है। यह ब्रह्मपुत्र की उपरि धारा है। हिंदुओं के पवित्र कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दक्षिणपूर्व में आंगसी ग्लेशियर से निकलती है। दक्षिण तिब्बत में बहते हुए यह अरुणाचल प्रदेश में आती है। जहां इसका पाट चौड़ा हो जाता है और इसे सिंयांग नदी के रूप में जाना जाता है। आखिर मे आकर यह ब्रम्हपुत्र नदी बन जाती है। बताया जाता है कि इसी ब्रम्हपुत्र मे मिलने वाली नदी के पानी को रोककर चीन द्वारा विजली उत्पादन किया जाता है।
No comments:
Post a comment
तहकीकात डिजिटल मीडिया को भारत के ग्रामीण एवं अन्य पिछड़े क्षेत्रों में समाज के अंतिम पंक्ति में जीवन यापन कर रहे लोगों को एक मंच प्रदान करने के लिए निर्माण किया गया है ,जिसके माध्यम से समाज के शोषित ,वंचित ,गरीब,पिछड़े लोगों के साथ किसान ,व्यापारी ,प्रतिनिधि ,प्रतिभावान व्यक्तियों एवं विदेश में रह रहे लोगों को ग्राम पंचायत की कालम के माध्यम से एक साथ जोड़कर उन्हें एक विश्वसनीय मंच प्रदान किया जायेगा एवं उनकी आवाज को बुलंद किया जायेगा।