कैलाश सिंह विकास वाराणसी
नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री के दर्शन
वाराणसी। शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन माता शैलपुत्री दरबार में भक्तों की भीड़। धर्म की नगरी काशी में भी नवरात्री के नौ दिनों में देवी के अलग अलग रूपों की पूजा विधिवत की जाती है। जिसमे सबसे पहले दिन माता शैल पुत्री के दर्शन का विधान है माँ का मंदिर काशी के अलई पूरा स्थित है। गौरी रूप में माता मुखनिर्मालिका गौरी के दर्शन का शास्त्रों में वर्णन है।
भगवती दुर्गा का प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्रीके रूप में है। हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्रीकहा गया। भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प है। इन्ह्हे पार्वती स्वरुप माना जाता है ऐसी मान्यता है की देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी। नवरात्र में इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट मिट जाते हैं। माँ की महिमा का पुराणों में वर्णन मिलता है की राजा दक्ष ने एक बार अपने यहा यग्य किया और सारे देवी देवतायों को बुलाया मगर सृस्टि के पालन हार भोले शंकर को नहीं बुलाया। इससे माँ नाराज हुई और उसी अग्नि कुण्ड में अपने को भष्म कर दिया फिर देवी का सैल राज के यहा जन्म हुआ जिन्हें माता शैलपुत्री के रूप में जाना जाता है। वाराणसी में माँ का अति प्राचीन मंदिर है। जहा नवरात्र के पहले दिन हजारों श्रधालुयों की भारी भीड़ उमड़ती है। हर श्रद्धालु के मन में यही कामना होती है की माँ उनकी मांगी हर मुरादों को पूरा करेंगी माँ को चढ़ावे में नारियल और गुड़हल का फूल काफी पसंद है।
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